ऊधम सिंह नगरदेश-विदेश

एक स्वतंत्रत, बेबाक आत्मस्वाभिमानी विचारों के विराट व्यक्तित्व थे। नरेन्द्र सिंह 

राजेश कुमार सिंह

रुद्रपुर। जी, मैं बात कर रहा हूँ, उत्तर प्रदेश राज्य के क्रन्तिकारी जनपद बलिया के चर्चित गांव कैंथवली के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं राजनैतिक विचारक स्व. राम दयाल सिंह के पुत्र के रूप में जन्मे और वर्तमान उत्तराखंड राज्य के जनपद उधम सिंह नगर के ग्राम पंचायत आनंदपुर को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले, एक स्वतंत्र, वेबाक, एवं आत्मस्वाभिमानी तथा विचारों के धनी व्यक्तित्व नरेंद्र सिंह , जो आज अपने पीछे बहुत बड़ा कारंवा छोड़कर, देवलोक को प्रस्थान कर गए आचार्य नरेंद्र देव के विचारों, की अंगुली को पकड़ कर चलने वाले इस समाजसेवी राजनेता ने यदि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी को अपना आदर्श माना, तो कभी भी स्वयं को उनके विचारों से स्वयं को अलग नहीं होने दिया।

 

जीवन पर्यंत मिट्टी से जुड़े रहने वाले इस मुखर और मृदु स्वभाव के इस विराट व्यक्तित्व में रिश्तों को संजो कर रखने की एक बड़ी और विशाल क्षमता थी आदर्श ग्राम आनंदपुर के ग्राम प्रधान के रूप में रहते हुए, उन्होंने स्वयं को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की राजनीति से न स्वयं को सिर्फ जोडे रखा बल्कि प्रत्येक दल और विचारों के व्यक्तित्वों के बीच में अपनी लोकप्रियता को भी बनाए रखा शायद चंद्रशेखर के व्यक्तित्व और उनके विचार विशेष का ही यह प्रभाव नरेंद्र सिंह पर पड़ा अस्सी के दशक नरेंद्र सिंह से मैं सवंरा सम्मेलन बलिया में मिला था और इस मिलन के मुख्य माध्यम थे, चंद्रशेखर के अति प्रिय सूर्यकुमार बहराइच कालांतर में मेरा और नरेंद्र सिंह का संबंध रिश्तेदार के रूप में तब परिवर्तित हो गया, जब मेरा विवाह, उनकी इकलौती भांजी सरोज सिंह से हो गया इस रिश्ते को कायम होने के बाद रिश्ते की मर्यादाएं थोड़ी बहुत जरूर बदली लेकिन वैचारिक चर्चाएं और मैत्री की खुशबू में कोई कमी नहीं आई चुकी बचपन में मेरी पत्नी की मां यानी नरेंद्र सिंह की बहन का स्वर्गवास हो गया, ऐसे वक्त में नरेंद्र सिंह ने मेरी पत्नी को एक पुत्री के रूप में न सिर्फ पाला बल्कि उधम सिंह नगर में ही रखकर पढ़ाया लिखाया।

यहां तक की उन्होंने उनकी शादी भी स्वयं ही की उनका यह गुण रिश्तों को लेकर साथ लेकर चलने का था ऐसा नहीं कि यह संबंध मेरे ही साथ था रिश्ते को निभाने के माहिर इस व्यक्तित्व ने अपने भाई, भतीजो, भतीजियो, बहनों एवं अन्य परिवार जनों के साथ ही निभाया ईश्वर ने नरेंद्र सिंह को जिंदगी का सारा सुख दिया था एक खूबसूरत बेटा ,डा रजनीश सिंह तीन फूलों जैसी बेटियां ( अर्चना सिंह, वंदना सिंह एवं अंकिता सिंह ) , ऐसे ही तीन प्रतिभाशाली दामाद,(असीम सिंह, आलोक भारत सिंह एवं श्री निखिल सिंह ) हैं, भाई भतीजे भांजे क्या नहीं थे श्री नरेंद्र सिंह के पास मुझे कहने में थोड़ा भी संकोच नहीं है कि नरेंद्र सिंह जी के सामाजिक पारिवारिक और राजनैतिक विरासत की बागडोर को थामने के लिए ईश्वर ने उन्हें श्रीमती रत्नप्रभा सिंह जैसी एक ऐसी उच्च शिक्षा प्राप्त कर्मठ समाजसेवी पुत्रबधू दिया, जिसकी अपनी एक अलग पहचान है, अपना एक अलग स्वाभिमान है l आज वह देश की बहुचर्चित समाजसेवी संस्था देवदूत वानर सेवा की राष्ट्रीय संगठन मंत्री हैं l मुझे तो लगता है कि श्रीमती रत्नप्रभा सिंह ने यह गुण अपने स्वर्गीय ससुर नरेंद्र सिंह से ही पाया l

नरेंद्र सिंह का श्री हनुमान जी के प्रति इतना बड़ा अनुराग था कि वे जीवन पर्यंत मंगलवार व्रत करते रहे उन्होंने अपने गांव में एक सुंदर सा हनुमान जी का मंदिर बनवाया था मंदिर की पुजारी और मंदिर से जुड़े लोगों की चिंता करना उनका स्वभाव था आनंदपुर ग्राम सभा से सटे भारत के प्रतिष्ठित गोविन्द बल्ल्भ पंत कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय पंतनगर के कुलपति एवं अन्य डीन एवं फैकल्टी मेंबर्स से उनके मित्रवत संबंध हुआ करते थे दशकों पूर्व जब मै आनन्दपुर आया- जाया करता था तब नरेन्द्र सिंह के बैठके पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी, राजनेता भारत भूषण, इंदिरा हरदेश आदि को मैंने आते-जाते, और चर्चा करते हुए सुना था ऐसा एक मिट्टी से जुड़े हुए व्यक्तित्व का ही प्रभाव हो सकता है वे जीवन पर्यंत अपने गांव आनंदपुर से दूर नहीं रहे आज नरेंद्र सिंह जी बशर्ते चिर निद्रा में सो गए हैं, लेकिन उनका आभामंडल आज भी उनके परिवार, उनके गांव और उस क्षेत्र के ऊपर बना है ,ऐसा मेरा मानना

है l।

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