उत्तर प्रदेशऊधम सिंह नगर

गांव में नहीं है शमशान घाट, खेतों में करना पड़ रहा दाह संस्कार कैबिनेट मंत्री सौरभ बहुगुणा की विधानसभा के गांव सिसैया मखबरा का बुरा हाल

सौरभ गंगवार 

रूद्रपुर। सरकार के विकास के बड़े बड़े दावों के बीच जिले में आज भी ऐसे कई गांव है जहां मूलभूत सुविधाओं का टोटा है। कई ऐसे गांव हैं जहां श्मशान घाट न होने के कारण खेतों में चिता जलती हैं। गर्मी, सर्दी के मौसम में तो चिता जलने में ज्यादा समय नहीं लगता लेकिन बरसात में जब बारिश की झड़ी हो और ऐसे में कोई स्वर्ग सिधार जाए तो उसका दाह संस्कार करना मुश्किल हो जाता है। ऐसा ही एक गांव है सितारगंज विधानसभा का ग्राम सिसैया मखबरा इस गांव में मूलभूत सुविधाओं के लिए लोग आज भी तरस रहे हैं। जबकि यह गांव कैबिनेट मंत्री सौरभ बहुगुणा की विधानसभा में आता है।

करीब 500 से अधिक की आबादी वाला सिसैया मखबरा गांव आजादी के 77 साल बाद भी मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर है। यह गांव कैबिनेट मंत्री सौरभ बहुगुणा की विधानसभा में आता है। सरकार विकास के बड़े बड़े दावे तो करती है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। सरकार के दावों की झलक देखनी है तो सिसैया मखबरा गांव में साफ देखी जा सकती है। शासन प्रशासन की उदासीनता के चलते इस गांव में ना तो अच्छी सड़क है और नही अन्य जरूरी सुविधाएं हैं और तो और कोई व्यक्ति जब मर जाता है तो शांतिपूर्वक उसका अंतिम संस्कार भी नहीं हो पता क्योंकि यहां श्मशान घाट तक नहीं है। बारिश या भयंकर गर्मी में मृत व्यक्ति का अंतिम संस्कार होता है तो उसकी आत्मा भी धूप और बरसात में कराह उठती है और उसके अंतिम संस्कार में जाने वाले लोग भी परेशान होकर सरकारी तंत्र को कोसते नजर आते हैं।

लोग प्रार्थना करते हैं कि बारिश के मौसम में कोई स्वर्ग नहीं सिधारे नहीं तो अंतिम संस्कार कैसे करेंगे गांव में अगर कोई किसी कारण स्वर्ग सिधार जाता है तो वह या तो अपनी खुद की जमीन पर, या फिर गांव की सड़क किनारे या फिर चिता चलाने के लिए दूसरे गांव के श्मशान घाट का सहारा लेना पड़ता है। जिनके पास अपने खेत हैं वह तो अपने खेत में अंतिम संस्कार कर लेते हैं लेकिन जिनके पास जमीन नहीं है उन्हें सबसे ज्यादा दिक्कत होती है। उन्हें दाह संस्कार के लिए दूसरे गांव के श्मशान घाट में जाना पड़ता है। गांव में श्मशान घाट के लिए कई बार ग्रामीण आवाज उठा चुके हैं लेकिन उनकी आवाज गांव में ही दबकर रह जाती है। आलम यह है कि अंतिम संस्कार करने के लिए ग्रामवासी 12 महीने परेशान होते हैं। सबसे अधिक दिक्कत बरसात के दिनों में होती है। बरसात में मृत्यु होने पर परिजन शोक में डूबे रहते हैं जबकि ग्रामीणों को उसके अंतिम संस्कार की फ्रिक रहती है कि बारिश के मौसम में कैसे अंतिम संस्कार होगा लेकिन ग्राम वासियों की परेशानियां की ओर नेताओं एवं प्रशासनिक अधिकारियों का कभी ध्यान नहीं गया इस समस्या को लेकर गांव के क्षेत्र पंचायत सदस्य एवं भाजपा अनुसूचित मोर्चा के जिलाध्यक्ष जितेंद्र कुमार गौतम ने एक बार फिर आवाज उठाते हुए शासन प्रशासन से समस्या के निराकरण की मांग की है।।

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