एक अधीक्षक तीन अस्पताल-स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल सीएम के गृह जनपद में सीएमओ की मनमानी सीएमओ की मेहरबानी से चिकित्सा अधीक्षक के अधीन तीन अस्पताल, व्यवस्थाएं चरमराईं अस्पताल बने रैफर सेंटर, मरीज निजी अस्पतालों की ओर जाने को मजबूर
सौरभ गंगवार/टुडे हिंदुस्तान
एक अधीक्षक तीन अस्पताल-स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल
सीएम के गृह जनपद में सीएमओ की मनमानी
सीएमओ की मेहरबानी से चिकित्सा अधीक्षक के अधीन तीन अस्पताल, व्यवस्थाएं चरमराईं
अस्पताल बने रैफर सेंटर, मरीज निजी अस्पतालों की ओर जाने को मजबूर
रुद्रपुर। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जिस जनपद ऊधम सिंह नगर से ताल्लुक रखते हैं, वहां की स्वास्थ्य सेवाएं आज बदहाली की ऐसी तस्वीर पेश कर रही हैं, जो सरकार के दावों की पोल खोलने के लिए काफी है। ज़िले के प्रमुख सरकारी अस्पताल किच्छा, नानकमत्ता और सितारगंज इन दिनों अपने हाल पर आंसू बहा रहे हैं। डॉक्टरों की अनुपलब्धता, सफाई की बदहाली और चिकित्सा संसाधनों की कमी के बीच मरीज अपनी किस्मत को कोसते हुए निजी अस्पतालों का रुख करने को मजबूर हैं।
इस पूरे हालात की जड़ में स्वास्थ्य विभाग की अंदरूनी सियासत और मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) की मनमानी है। विभाग ने चिकित्सा अधीक्षक कुलदीप यादव को एक साथ किच्छा, नानकमत्ता और सितारगंज के सरकारी अस्पतालों की जिम्मेदारी सौंप दी है। तीन-तीन अस्पतालों की जिम्मेदारी एक अधिकारी को देने का यह फ़ैसला न केवल तर्कहीन है, बल्कि वरिष्ठता और सेवा संतुलन की अवधारणा का भी घोर अपमान है।
हैरानी की बात यह है कि कुलदीप यादव तीनों अस्पतालों में शायद ही कभी समय दे पाते हैं। उनकी अधिकांश उपस्थिति सीएमओ कार्यालय में ही देखी जाती है। परिणामस्वरूप अस्पतालों में व्यवस्थाएं पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी हैं। मरीजों को समय पर न डॉक्टर मिलते हैं, न दवाएं, न परीक्षण की सुविधाएं अस्पतालों में गंदगी का आलम यह है कि कई बार मरीज खुले में बैठकर इलाज का इंतजार करते दिख जाते हैं।
जिस जनपद को मुख्यमंत्री का प्रतिनिधित्व प्राप्त है, वहां इस तरह की लापरवाही और मनमानी शासन-प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़े करती है। स्वास्थ्य विभाग में मौजूद अनुभवी और वरिष्ठ अधिकारियों को दरकिनार कर एक ‘चेहते’ अधिकारी को तीनों अस्पतालों की कमान सौंपना सिर्फ पक्षपात का उदाहरण नहीं, बल्कि सरकारी स्वास्थ्य तंत्र के साथ किया जा रहा खुला मज़ाक है।
सरकार भले ही हर मंच से स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार की बात कर रही हो, लेकिन हकीकत यह है कि ऊधम सिंह नगर जैसे महत्वपूर्ण जनपद में स्वास्थ्य सेवाएं ‘रैफर सेंटर’ बनकर रह गई हैं। किसी भी अस्पताल में प्राथमिक उपचार से आगे की सुविधा नहीं है। ज़रा-सी जटिलता आने पर मरीजों को हल्द्वानी या बरेली रैफर कर दिया जाता है। गरीब और दूरदराज के लोगों के लिए यह स्थिति बेहद तकलीफदेह बन चुकी है।
इस स्थिति से लोगों में भारी असंतोष है। मांग की जा रही है कि इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कराई जाए और सीएमओ द्वारा की गई पक्षपातपूर्ण नियुक्तियों को तत्काल निरस्त किया जाए साथ ही, तीनों अस्पतालों में अलग-अलग और समर्पित चिकित्सा अधीक्षकों की नियुक्ति की जाए, ताकि मुख्यमंत्री के गृह जनपद की जनता को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिल सकें बहरहाल यह विडंबना ही है कि प्रदेश का नेतृत्व करने वाला जनपद ही स्वास्थ्य सेवाओं के मोर्चे पर सबसे पीछे नजर आ रहा है। सवाल यह है कि क्या सरकार इस सच्चाई को स्वीकार करेगी और कुछ ठोस कदम उठाएगी, या फिर ये अस्पताल यूं ही रैफर सेंटर बने रहेंगे?