अतिक्रमण समस्या है या लोगों का अधिकार
सौरभ गंगवार
रुद्रपुर। अतिक्रमण एक मुद्दा नहीं सच्चाई है और अब समस्या भी बन गया है अच्छे के लिए किए जाने वाला अतिक्रमण विनाशक भी हो जाता है अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई यूं ही नहीं होती है बार-बार आगाह किया जाता है जो सरकार जनता की हर संभव मदद करने को तैयार रहती है वो उसे घर से बेघर क्यों करेगी स्वयं भी तो विचार कीजिए क्या सारी गलती प्रशासन की ही है ?
अतिक्रमण समस्या है या लोगों का अधिकार हर तरह के अतिक्रमण से सब दुःखी हैं पर कौन इसकी मार झेल रहा है शासन या जनता जितना अधिक विकास हो रहा है. सड़कें चौड़ी हो रही हैं उतना ही लोग अतिक्रमण कर रास्तों को छोटा करते जा रहे हैं सड़कों के किनारे फुटपाथ इतने छोटे हो गए हैं कि पैदल चलना मुश्किल हो गया है कहीं भी किसी भी शहर, गांव, नगर को देखें तो सबकी हालत खराब है अतिक्रमण करके मार्गों को इतना संकीर्ण कर दिया है कि हर वक्त जाम की स्थिति बनी रहती है. वाहन, रिक्शे, विक्रेताओं के ठेले चलना भी मुश्किल है. पैदल को तो रास्ता ही नहीं मिल पाता है फुटपाथ पर भी बेचने का सामान लगा लेते हैं वाहन पार्किंग और उस पर निर्माण कार्य होते रहना समस्या और खतरा दोनों का ही जोखिम रहता है ?
जिसे रास्ते गुजरो उधर ही मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. रेहड़ी, पटरी वालों को तो किसी का भय ही नहीं है सार्वजनिक स्थान तो जैसे इनकी संपत्ति है. कहीं भी कुछ भी निर्माण कर लेते हैं चाहे दुकान हो या मकान इनके प्रति प्रशासन जब सजग होकर इनके घर,दुकान या ठेले हटवाने की मुहिम छेड़ता है तो ये आंदोलन पर उतर आते हैं तकलीफ देखने वालों को भी होती है पर ये सबकी नाक में दम किए रहते हैं सड़कों के दोनों ओर अपना अधिकार मानकर कब्जा किए रहते हैं और पूर्ण विश्वास के साथ अपना व्यवसाय चलाते हैं कभी-कभी तो अपनी दुकान के सामने किसी को खड़ा होने से भी रोक देते हैं, जबकि खुद अवैध तरीकों से दुकान हथियाए हुए हैं कोई मान्यता इनके पास नहीं होती ?
रुद्रपुर शहर का तो ये आलम है कि हर कदम पर खाने का सामान बेचने वालों के चलते-फिरते वाहन सड़कों को घेर लेते हैं कई तरह की खूबसूरती और व्यंजनों के स्वाद से ग्राहक आकर्षित होकर आते हैं और सड़कें जाम कर देते हैं बाजारों में दुकान तो आगे बढ़ाकर रखते ही हैं उतना ही सामान दुकानों के आगे भी लगा लेते हैं एक तो जनसंख्या की अधिकता दूसरे हर जगह अतिक्रमण. वास्तविक जीवन का आनंद तो खोता जा रहा है बड़े-बड़े अधिकारी इन रास्तों से गुजरते हैं पर कोई कुछ नहीं करता जब कार्रवाई होती है और प्रशासन हरकत में आता है तो कितने ही लोगों का सामान फेंक दिया जाता हैं या इन पर लाठी बरसाई जाती है तब ये ही लोग दया के पात्र लगते हैं ?
रुद्रपुर हो या अन्य कोई भी गांव, शहर, कस्बा, कितने ही लोगों ने जमीनें हथिया ली हैं उधम सिंह नगर में शासन द्वारा बुलडोजर चलाया गया था अवैध अतिक्रमण करने वालों की इमारतें गिराई गई थी नेताओं ने अपने रिश्तेदारों के नाम पर करोड़ों की जमीनों का सौदा किया उन जमीनों पर लोग गैरकानूनी तरीके से अपना हक जमाए हुए थे प्रशासन की कार्रवाई पर लोग बौखलाए यह किसी एक शहर की दास्तान नहीं है. चेतावनी के बाद भी लोग नहीं मानते हैं कोर्ट कहां तक राहत दे अतिक्रमण कहीं तो दरियादिली का नाम है कहीं दर्द का आगाज कहीं रौबदार लोगों की आवाज है तो कहीं कमजोरों की चीख कहीं जबरदस्ती का अंदाज है तो कहीं बेबसी का आलम कहीं आतंक का पर्याय है तो कहीं मजबूरी की कहानी हर तरह के अतिक्रमण से सब दुःखी हैं पर कौन इसकी मार झेल रहा है शासन या जनता ।।