भाजपा को भारी पड़ सकता है अति उत्साह ! ‘मोदी मैजिक’ नहीं चला तो डूब सकती है नैया
सौरभ गंगवार
रूद्रपुर। लोकसभा चुनाव की सरगर्मियां लगातार तेज हो रही हैं। नैनीताल उधम सिंह नगर सीट पर भाजपा कांग्रेस दोनों ही दलों ने प्रचार में ताकत झोंक दी है। प्रधानमंत्री मोदी की जनसभा के बाद वैसे तो भाजपा प्रचार में कांग्रेस से आगे निकलती नजर आ रही है। इस रैली के बाद भाजपा का उत्साह चरम पर है लेकिन अति उत्साह भाजपा को भारी पड़ सकता है। भाजपा को इस बार भी मोदी मैजिक की उम्मीद है, लेकिन राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर मोदी मैजिक नहीं चला तो भाजपा की राह इस चुनाव में आसान नहीं होगी।
मौजूदा चुनावी परिदृश्य पर नजर डालें तो परिस्थितियां सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में बताई जा रही हैं। राम मंदिर, समान नागरिकता कानून, जैसे कुछ फैसलों से भाजपा की छवि मजबूत जरूर हुयी है लेकिन सरकार के कई फैसलों से जनता को निराश भी किया है। मसलन महंगाई, बेरोजगारी, बढ़ते अपराध जैसे कई मूलभूत मुद्दों पर आम जनता भाजपा सरकार से संतुष्ट नजर नहीं आती लेकिन इन जमीनी मुद्दों को छोड़ भाजपा बड़े बड़े ख्वाब दिखाकर चुनावी माहौल अपने पक्ष में करने की कोशिश में लगी है। भाजपा को विशेषकर राम मंदिर के मुद्दे से बड़ी उम्मीदें हैं। इससे उत्साहित हो कर भाजपा ने अबकी बार चार सौ पार का नारा दिया है, सत्ताधारियों की दृष्टि से हर तरफ भाजपा की लहर है। अतिउत्साही भाजपा को यह विस्मृत नहीं होना चाहिए कि साल 2004 में भी उसके पास नरेन्द्र मोदी व अमित शाह की तरह अटल बिहारी वाजपेयी व लालकृष्ण आडवाणी जैसे करिश्माई नेतृत्व की छत्रछाया थी। उस लोकसभा चुनावों में भारत उदय का आकर्षक नारा भी दिया गया था, अर्थव्यवस्था व विकास तब भी तेजी से आगे बढ़ रहा था परन्तु तब भाजपा के लिए परिणाम निराशाजनक रहे छोटे-छोटे दलों को साथ लेकर कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्षा सोनिया गान्धी ने भाजपा को ऐसी पटकनी दी कि अगले दस साल तक केंद्र में कांग्रेस की सरकार सत्ता में रही उस समय नैनीताल सीट पर केसी बाबा सांसद चुने गये थे उन्होंने भाजपा के विजय बंसल को करारी शिकस्त दी थी।
मोजूदा परिस्थितियां काफी हद तक भाजपा के पक्ष कही जा सकती है लेकिन मतदाताओं का रूख फिलहाल स्पष्ट नहीं है। मतदाता खामोश है वो किधर पलटेगा अभी कुछ नहीं कहा जा सकता भले ही भाजपा को लक्ष्य सरल लग रहा है परन्तु मार्ग इतना भी आसान नहीं है। चाहे कांग्रेस कमजोर दिख रही है परन्तु कई मुद्दे ऐसे हैं जो भाजपा की मुश्किलें बढ़ा सकते हैं। बेरोजगारी और महंगाई की मार से आम आदमी त्रस्त नजर आ रहा है। पिछले दस सालों में आम गरीब तबके की हालत में कोई खास सुधार नजर नहीं आ रहा है। पेट्रोल डीजल के दाम से लेकर दूध राशन सब कुछ महंगा हुआ है। फल और सब्जियां आम आदमी की पहुंच से दूर होती जा रही है। यह बड़ी विडम्बना है कि भाजपा के दस साल के शासन के बावजूद अभी भी तमाम लोग मुफ्त के राशन पर निर्भर है। सिडकुल में श्रमिकों की हालत बदतर है। आंगनबाड़ी कार्यकर्तियां, आशा वर्कर आंदोलन की राह पर है। शिक्षकों से लेकर सरकारी कर्मचारियों के कई संगठन अपनी मांगों को लेकर समय समय पर आवाज उठाते रहे हैं, जिनका समाधान नही हुआ है। हजारों की संख्या में गेस्ट टीचर आज भी सरकार का वायदा पूरा होने की प्रतीक्षा में है। धामी सरकार ने गेस्ट टीचरों को उन्हीं के गृह जनपदों में तैनाती करने का ऐलान किया था जो दो साल बीतने के बाद भी पूरा नहीं हो पाया है। अंकिता हत्याकाण्ड को लेकर भी लोगों में नाराजगी है। अग्निवीर योजना ने भी भाजपा सरकार से युवाओं का मोह भंग किया है। किसान भाजपा सरकार से नाखुश है। सरकार के कई दावों की जमीनी हकीकत वास्तविकता से परे है। रूद्रपुर में मेडिकल कालेज आज भी पूरी तरह से शुरू नहीं हो पाया है। किच्छा में एम्स की स्थापना का दावा एक साल से किया जा रहा है, धरातल पर इसके लिए अभी एक ईट तक नहीं लगी है।
उधम सिंह नगर में बढ़ते अपराधों की काली छाया का असर भी इस चुनाव में पड़ सकता है। हाल ही में मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र में स्थित बाबा भारामल मंदिर के महंत की हत्या और उसके बाद डेरा कार सेवा के जत्थेदार बाबा तरसेम सिंह की हत्या ने भी कानून व्यवस्था के मामले में सरकार की छवि पर दाग लगाया है। ऐसे में कांग्रेस अगर जमीनी मुद्दों को चुनाव से पहले जनता के बीच ले जाने में कामयाब रही तो भाजपा के अति उत्साह पर पानी फिर सकता है।
राहुल और प्रियंका गांधी बनायेंगे कांग्रेस के लिए माहौल
रूद्रपुर। रूद्रपुर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैली का जवाब देने के लिए कांग्रेस राहुल गांधी या प्रियंका गांधी को लाने की तैयारी कर रही है। कांग्रेस कार्यकर्ता रूद्रपुर में प्रियंका गांधी की रैली पर जोर दे रहे हैं लेकिन संभावना है कि प्रियंका की रैली गढ़वाल में कराई जा सकती है। जबकि कुमांऊ में रूद्रपुर या हल्द्वानी में राहुल गांधी चुनावी जनसभा को सम्बोधित कर सकते हैं। ये रैलियां कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम कर सकती हैं।