लोक आस्था, अध्यात्म और पर्यावरण अनुकूल है छठ का महापर्व
सौरभ गंगवार
रुद्रपुर। छठ पूजा का त्योहार पूरे भारत में मनाया जाता है, इस पूजा को हिंदुओं का सूर्य देव की उपासना का सबसे प्रसिद्ध त्योहार माना जाता है क्योंकि यह त्यौहार सष्टि तिथि पर मनाया जाता है। इसे इसीलिए छठ या सूर्य षष्ठी व्रत बोला जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार यह व्रत साल में दो बार आता है एक बार चैत्र में तब इसे चैती छठ कहा जाता है और कार्तिक शुक्ल पक्ष की सष्टि पर मनाए जाने वाले छठ त्यौहार को कार्तिकी छठ कहा जाता है। विज्ञान जब अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचता है तब वहां से अध्यात्म की गणना शुरू होती है इस बात का उल्लेख अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपने किताब “अनसर्टेंटी” में किया था। ऐसा माना जाता है कि आध्यात्मिक चेतना ही मनुष्य को मानसिक रूप से सशक्त और मजबूत बनाती है, क्या अध्यात्म को परावर्तित करना हम मनुष्यों ने सीख लिया है?
इसका जवाब शायद ही किसी के पास हो पर यह सत्य है कि लोक आस्था से कहीं न कहीं आध्यात्म की कुछ सीढ़ियों को लांघा जा सकता है। बिहार के कुछ हिस्से से शुरू हुआ एक लोक आस्था का पर्व “छठ” आज दुनिया के हर कोने में बड़े धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। क्या अमेरिका क्या रूस क्या लंदन आज इस पर्व ने दुनिया को यह बताया है कि हम भारतीय लोग आस्था के साथ-साथ प्रकृति और पर्यावरण को ईश्वर का एक अंश मानते हैं। यह छठ का महापर्व आध्यात्मिक चेतना जागृत करने का एक जीता जागता पथ है जिसमें व्रत, पूजन, त्याग और तपस्या का समायोजन एक साथ है।
यह पर्व धार्मिक के साथ-साथ वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है प्रिया व्रत नाम के एक राजा हुआ करते थे जिनकी कोई भी संतान नहीं थी पुत्र प्राप्ति की कामना के लिए उन्होंने यज्ञ करवाया जिसका नाम था पुत्र कमेष्ठी यज्ञ जिसे करने पर उन्हें संतान तो प्राप्त हुई लेकिन वह अमृत संतान थी जिसे वह दफनाने के लिए ले जा रहे थे उसी वक्त उन्हें सृष्टि देवी ने दर्शन दिया और जैसे ही उसे बालक को स्पर्श किया तो वह बालक किलकारियां मारकर हंसने लगा तब से ही लगातार छठ पर्व का पूजन किया जाता है यह पर्व हिंदू धर्म का सबसे कठिन व्रत माना जाता है यह बिहार के लोगों के लिए पर्व ही नहीं बल्कि उनकी संस्कृति से जुड़ा है वैज्ञानिक दृष्टिकोण से षष्ठी तिथि यानी छठ एक विशेष खगोलीय परिवर्तन वाला दिन है।
जिस समय सूर्य की पैराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं उसके संभावित को प्रभावों से मानव की यथा संभव रक्षा करने का समर्थ इस छठ पूजा की परंपरा में है इस पर्व का वैज्ञानिक महत्व है जिसके माध्यम से पराबैंगनी किरण के हानिकारक प्रभाव से जीवन की रक्षा संभव है आस्था चलगामी और उगते सूर्य को अरग देने के दौरान इसकी रोशनी के प्रभाव में आने से कोई चर्म रोग नहीं होता और इंसान निरोगी रहता है दीपावली के बाद सूर्योदय का ताप पृथ्वी पर काम पहुंचता है इसलिए व्रत के साथ सूर्य के ताप के माध्यम से ऊर्जा का संचय किया जाता है ताकि शरीर सर्दी में स्वस्थ रहे यह पर व पुत्र प्राप्ति की मनोकामना के लिए विशेष है। यह इस पर्व में 36 घंटे का निर्जला उपवास रखा जाता है यह नहाए खाए से शुरू होने वाला पर्व उगते हुए सूर्य को अर्क देने के साथ-साथ डूबते हुए सूर्य को प्रणाम करता है तार्किक महत्व देखें तो इसका मतलब यह है कि जिन परिस्थितियों से जिन भावनाओं से जिनको प्रभावों से हम ग्रसित हैं उनको नकार सूर्य की करने की तरह अपने अंतरात्मा को प्रज्वलित करें अपने अतीत को अपने वर्तमान पर प्रभावी होने से बचे।
सूर्य के प्रकाश और इस पर रंगों के प्रभाव के कारण शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है साथ ही साथ सूर्य की रोशनी से मिलने वाला विटामिन डी भी शरीर को प्राप्त होता है जिससे पाचन तंत्र और शरीर की ऊर्जा पर विशेष प्रभाव पड़ता है यह पर्व एक रूप से प्रकृति पूजा का भी विस्तारक है यह पर्व आने पर नदियां तालाब जलाशय की पूजा की जाती है यह पर्व नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने की प्रेरणा देता है इस पर्व में अनंत प्रकार के फलों सब्जियों को प्रसाद रूप में पूजा जाता है जिसको हम आज के दौर में इको फ्रेंडली एनवायरनमेंट या वनस्पति का महत्व भी समझते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य सभी ग्रहों का अधिपति माना गया है इसलिए कहा जाता है कि सभी ग्रहों को प्रसन्न करने की बजाय यदि केवल सूर्य की आराधना की जाए और नियमित रूप से अर्थ दिया जाए तो कई लाभ मिलते हैं। इस व्रत का महत्व माता सीता एवं द्रोपदी की शास्त्रीय विघानों में भी मिलता है। यह आस्था का महापर्व अब दुनिया भर में प्रकाशमान है लोकमंगल और लोक कल्याण की कामना के साथ इस महापर्व पर भारत की एकता, अखंडता एवं संप्रभुता को बनाए रखने के लिए हमारे ऋषियों ने जो “सर्वे भवंतु सुखिन:” का जो मूल मंत्र दिया था उसे पर चलना हम भारतीयों का परम कर्तव्य है। कई आयुर्वेदिक डॉक्टर का मानना है कि इस व्रत से शरीर में हारमोंस का संतुलन भी बेहतर होता है खास तौर पर महिलाओं को होने वाली ज्यादातर समस्याओं के पीछे हार्मोनल असंतुलन जिम्मेदार होता है ऐसे में व्रत रखने से शरीर के घाटे बड़े हार्मोन बैलेंस होते हैं और आपका शरीर स्वस्थ और सेहतमंद रहता है इस व्रत के उपवास से मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी फायदा है पूजा प्रक्रिया के दौरान एक रचनात्मक शांति मन में प्रबल होती है जो नकारात्मक ऊर्जा को शरीर से दूर करती।।