ऊधम सिंह नगर

मुख्यमंत्री के गृह जनपद में श्रम कानूनों की उड़ रही धज्जियां, फैक्ट्रियों के साथ साथ निजी संस्थानों में भी श्रम कानून ताक पर।

सौरभ गंगवार 

रूद्रपुर। धाकड़ धामी कहे जाने वाले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के गृह जनपद में श्रम कानूनों की खुलेआम धज्जिया उड़ रही है। एक समय था जब सीएम धामी ने भाजयुमो प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए श्रमिकों को न्याय दिलाने के लिए बड़ा आंदोलन किया था जिसकी गूंज सिडकुल में ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में सुनी गई थी। लेकिन आज सीएम होने के बावजूद धामी अपने ही जनपद में श्रम कानूनों का सख्ती से पालन कराने मं नाकाम हो रहे हैं। आलम यह है कि सिडकुल की कंपनियों के साथ साथ अन्य निजी संस्थानों में भी श्रम कानूनों का पालन नहीं हो रहा है।

जिले की सैकड़ों फैक्ट्रियों में मजदूरों का जमकर शोषण किया जा रहा है। फैक्ट्रिीयों में तय मापदंडों के अनुरूप उन्हें सुविधायें नहीं दी जा रही हैं। सुरक्षा उपकरण उपलब्ध नहीं कराए जाते हैं। जिससे आये दिन श्रमिक हादसों के शिकार हो रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि श्रम विभाग आखिर करता क्या रहता है। ठेकेदार और कंपनी प्रबंधन बेखौफ होकर नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। सरकार और प्रशासन का भी खौफ नहीं है।श्रम विभाग की हालत यह है कि फैक्ट्रियों में मजदूरों की हालत देखने के लिए खुद जाना तो दूर उनके पास शिकायत लेकर जाने वाले श्रमिकों को भी न्याय नहीं मिल पाता।

हजारों श्रमिक सिडकुल में ठेकेदारी प्रथा के अंतर्गत काम करने को मजबूर हैं। यहां पर शिक्षित युवाआं से भी मजदूरों जैसा काम लिया जा रहा है। फैक्ट्रियों में श्रम कानूनों का पूरी तरह पालन नहीं होता। आठ घंटे की जगह दस से बारह घंटे काम लेना फैक्ट्रियों में आम बात हो चुकी है। अप्रशिक्षित श्रमिकों से बड़ी बड़ी मशीनों पर काम लेकर उनकी जानको जोखिम में डाला जा रहा है। इसके बावजूद नौकरी कब तक रहेगी इसकी कोई गारंटी नहीं है। अंन्टेªंड श्रमिकों से हैवी मशीनों पर काम लेने के चलते अब तक कई श्रमिक जान गवां चुके हैं और कई श्रमिकों के अंग भंग हो चुके हैं। हादसों के बाद फैक्ट्री प्रबंधन मुआवजा देने के बजाय मामले में लीपापोती करता नजर आता है।

सिडकुल में कई फैक्ट्रियां अपने श्रमिकों को निकालकर यहां से रातों रात सामान समेट चुकी है। सब्सिडी लेने के बाद कई फैक्ट्रियों ने श्रमिकों को उनके हाल पर छोड़ दिया हैं। यह सिलसिला लगातार जारी है। कोरोना काल में लॉकडाउन के बाद बंद कई फैक्ट्रियों में ताले लटक गये। कई कंपनियों को तो अपनी इकाईयां बंद करने के लिए लॉकडाउन और कोरोना का बहाना मिल गया है। ये फैक्ट्रियां यहां से पहले से ही जाने का मन बना चुकी थी। कई फैक्ट्रियों नये युवाआंे को रोजगार देने के बजाय अब पुराने श्रमिकों को भी फैक्ट्री से निकाला जा रहा है। जिसके चलते आये दिन श्रमिक धरना प्रदर्शन के लिए मजबूर होते हैं। कम्पनियां अपने ही वायदों और घोषणाओं से मुकर रही है।

श्रम कानूनों की अनदेखी केवल फैक्ट्रियों तक ही सीमित नहीं है। बल्कि मॉल, होटल, शोरूम,हॉस्पिटल, दुकानों और स्पा सेंटरों में भी श्रमिक वर्ग के लिए बनाये गये कानून नदारद हैं। दुकान पर बाल श्रमिकों को आज भी काम करते हुए देखा जा सकता है। ठेली रेहड़ियों में नाबालिग बच्चे बर्तन धोने को मजबूर हैं। कई निजी संस्थानों में तो श्रमिक बंधुआ मजूदरों जैसी हालत में काम करने को मजबूर हैं लेकिन श्रमिक विभाग इसकी सध लेने को तैयार नहीं है।

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