Saturday, July 27, 2024
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ऊधम सिंह नगर

भाजपा मोदी की गारंटी के सहारे चुनाव प्रचार में आम जनता से जुड़े मुद्दे गायब खामोश मतदाता कर सकते हैं बड़ा उलटफेर

सौरभ गंगवार

रूद्रपुर। लोकसभा चुनाव के लिए होने जा रहे मतदान के लिए अब महज दो दिन शेष है। भाजपा जहां मोदी की गारंटी के सहारे है तो वहीं कांग्रेस चमत्कार की आस में है। कांग्रेस जहां जनहित के मुद्दों को जनता के बीच ले जाने में नाकाम रही है वही भाजपा भी जनता के मुद्दों को दरकिनार कर सिर्फ मोदी की गारंटी के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश में है। लेकिन इस बार भाजपा के लिए माहौल पहले जैसा नहीं है। मतदाताओं की खामोशी इस चुनाव में बड़ा उलटफेर भी कर सकती है।

लोकसभा चुनाव इस बार आकर्षक वादों और आधारहीन दावों के बल पर लड़ा-लड़ाया जा रहा है। जनता से जुड़े मुद्दों को नज़रंदाज़ कर विकास के दावे किए जा रहे हैं। मतदाता को राजनीतिक दलों से उनके दावों और वादों के आधार के बारे में पूछना चाहिए चुनावी मुद्दों के नाम पर अनावश्यक मुद्दे उछाल कर जनता का ध्यान विकेंद्रित किया जा रहा है। चुनाव का मौसम आते ही राजनीतिक दल जन साधारण का ध्यान वास्तविक मुद्दों से भटकाने के लिए ऐसे-ऐसे मुद्दे लाते हैं जो मतदाताओं को भ्रमित करते हैं। देश के आम चुनाव में चुनावी मुद्दे जनसाधारण की समस्याएं होनी चाहिए, जो उनके दैनिक जीवन को प्रभावित करते हैं। आज के मेधावी युवा देश से विदेश में पलायन कर रहे हैं। मुद्दा यह होना चाहिए कि उनका पलायन रोका जाए उन्हें रोजगार दिया जाए देश का आर्थिकी विकास के साथ आम आदमी की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हो लेकिन भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ही दल आम जनता से जुड़े मुद्दों को भूल बैठे हैं।

भाजपा चुनाव प्रचार में सत्तर साल तक राज करने वाली कांग्रेस की खामियां गिनाने और पीएम मोदी की उपलब्धियां गिनाने या फिर धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण करने की हर मुमकिन कोशिश कर रही है। जाति का भी बोलबाला है। जैसे-जैसे मतदान की तारीख करीब आ रही है, जनता के मुद्दे पार्टियों के प्रचार से गायब होते जा रहे हैं। प्रचार अभियान में बेरोजगारी, महंगाई, कानून व्यवस्था, समाज कल्याण जैसे जनता के मुद्दों पर कम ही सुनने को मिल रहा है।

प्रदेश में बेरोजगारी बड़ा मुद्दा है। लेकिन सत्तारूढ़ पार्टी इन समस्याओं को दूर करने का कोई रोड मैप नहीं बता रही है। उत्तराखंड में नौकरियों की कमी के चलते युवाओं को प्रदेश से पलायन करना पड़ता है, उच्च शिक्षण संस्थाओं की कमी, पानी की समस्या, गांवों को सड़कों से जोड़ने की समस्या- यह सब आम जनता के मुद्दे हैं। लेकिन ना तो सत्तारूढ़ भाजपा ना ही मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस यह बता रही है कि इन समस्याओं को दूर करने के लिए वे क्या रणनीति अपनाएंगी सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी अपनी सरकार के काम कम गिना रही है, कांग्रेस की पिछली सरकारों की खामियां अधिक बता रही है। किसी भी चुनाव में बेरोजगारी सबसे अहम मुद्दा होना चाहिए गरीबी हो, महंगाई हो या कोई और मुद्दा, ग्लोबल इंडेक्स में हम लगातार नीचे रह रहे हैं। लेकिन चुनावों में इनकी कहीं कोई चर्चा नहीं हो रही है। स्वास्थ्य सुविधाएं कैसे बेहतर की जाएंगी ताकि भविष्य में कोरोना जैसी किसी और महामारी का सामना आसानी से किया जा सके, इसकी चर्चा कोई नहीं करता महामारी के दौरान बंद हुई करोड़ों लघु और छोटी औद्योगिक इकाइयों का कैसे रिवाइवल किया जाए, इसकी बात कोई नहीं करता ना ही कोई यह कहता है कि भविष्य में फिर कभी मजदूरों के पलायन की स्थिति ना आए, उसके लिए उनकी पार्टी की सरकार क्या करेगी दोनों ही पार्टियां अपनी-अपनी चुनावी घोषणाओं से जनमानस को लुभाने की कोशिशों में लगी हैं। भोली जनता सोचती है कि इस बार दिन बहुरेंगे समस्याओं से निजात मिलेगी पेयजल, प्रदूषण, आवागमन के साधन, शिक्षा और स्वास्थ्य, बेरोजगारी, नशे की बढ़ती प्रवृत्ति का समाधान होगा लेकिन चुनावी घोषणा केवल दिखावा मात्र साबित होता है। सत्ता हथियाने के लिए जनता से किए वादे धरे के धरे रह जाते हैं।

राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं कि इस बार मतदाताओं में जागरूकता आयी है। इसीलिए मतदात खामोश है। मतदाताओं की खामोशी बड़ा उलटफेर कर सकती है। भाजपा कांग्रेस के दावों के बीच मतदाता चुप्पी साधे हैं। पिछले चुनावों में मोदी मैजिक के सहार नैया पार करने वाली भाजपा की राह इस बार पहले जितनी आसान नजर नहीं आ रही। महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर जनता इस बार वोट की चोट कर सकती है।

भारी पड़ सकता है अति उत्साह
रूद्रपुर। भाजपा को अति उत्साह इस चुनाव में भारी पड़ सकता है। चार सौ पार का नारा देने वाली भाजपा के कार्यकर्ता इस बार जीत तय मानकर जनता के बीच जाने से भी कतरा रहे हैं। कई कार्यकर्ता तो घमण्ड में इस कदर चूर हैं कि वो खुलेआम यह कहते नजर आ रहे हैं कि भाजपा को कोई ताकत नहीं हरा सकती भाजपा नेता रूद्रपुर विधानसभा सीट से पांच लाख से अधिक मतों से जीत का दावा कर रहे हैं। चुनाव से ठीक पहले विपक्षी दलों के लोगों को प्रलोभन देकर या फिर उनकी कमजोर नस पकड़कर उन्हें पार्टी में शामिल किया जा रहा है। अपनी पार्टी को निजी हितों के चलते छोड़ने वाले ऐसे लोग भाजपा के साथ कितनी वफादारी करेंगे यह आने वाला समय बतायेगा।।

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