“ विपक्ष के महानगर का ‘गायब नेता’—न पद बचा, न समर्थन… पर ठेकेदारी का आत्मविश्वास अब भी 100%” – नेताजी ने अपने कार्यकाल में निष्ठावान तरीके से विपक्ष की भूमिका ऐसी निभाई पूरा विपक्ष ही निपटा दिया – चुनाव के दौरान पार्षदों को तो टिकट ऐसे बांटे जैसे सरकारी राशन की हो दुकान – नेता जी को पद की लड़ाई से ज्यादा तो उनको पत्थर की लड़ाई पड़ी थी भारी
“ विपक्ष के महानगर का ‘गायब नेता’—न पद बचा, न समर्थन… पर ठेकेदारी का आत्मविश्वास अब भी 100%”
– नेताजी ने अपने कार्यकाल में निष्ठावान तरीके से विपक्ष की भूमिका ऐसी निभाई पूरा विपक्ष ही निपटा दिया
– चुनाव के दौरान पार्षदों को तो टिकट ऐसे बांटे जैसे सरकारी राशन की हो दुकान
– नेता जी को पद की लड़ाई से ज्यादा तो उनको पत्थर की लड़ाई पड़ी थी भारी
रिपोर्ट। अभिषेक शर्मा
रुद्रपुर की राजनीति इन दिनों बड़े ही विचित्र दौर से गुजर रही है। जहां विपक्षी दल के एक ऐसा नेता, जिसे कल तक हर सरकारी दफ्तर में फाइलों की तरह देखा जाता था, जो हर बैठक में सामने की कुर्सी पर नज़र आता था, आज अचानक ‘अज्ञात कारावास’ नामक रहस्यमय स्थान पर ध्यानस्थ बताया जा रहा है।
गायब होने की वजह कुछ लोग आध्यात्मिक बताते हैं, तो कुछ राजनीतिक। कुछ जानकारों का दावा है कि नेताजी के पार्टी विरोधी गतिविधियों में तेजी आने के साथ ही, सत्ताधारी पार्टी के जनप्रतिनिधियों के साथ उनकी “नई नई दोस्ती” इतनी बढ़ गई कि पार्टी ने उन्हें प्यार भरा ब्रेक ही दे दिया। वही पार्टी के ही कुछ वरिष्ठजनों का कहना है कि पार्टी ने तो नेताजी को बस दूर से हाथ हिलाया, तो वो खुद ही दौड़कर सीमा पार हो गए।”
सूत्रों की मानें तो नेता जी का पद जाने के बाद वह इतने आहत हो चुके हैं कि हर दिन वे एक नया दोषी खोजते हैं—कभी अपनी ही पार्टी के जनप्रतिनिधि , कभी बूथ कमेटी, कभी वार्ड अध्यक्ष, तो कभी वह कार्यकर्ता जो आज तक उनसे मिला ही नहीं।
और जब उनका इससे भी मन नहीं भरता तो वह अक्सर पड़ोसी राज्यों में अपने “कार्यकृतियों के साथ फुर्सत के पल बिता लेते हैं तो कभी उन्हीं के साथ राजनीतिक माहौल बनाने के लिए उन्हीं के गिने-चुने 4–5 लोगों के साथ पुतला फूकने चले जाते हैं l
आश्चर्य की बात यह है कि अपनी गलतियों पर विचार करने की बजाय नेता जी ने उल्टा अपनी ही पार्टी के पुराने निष्ठावान वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ सार्वजनिक मंचों से जहर उगलने का कार्य करते रहे हैं l नेताजी आरोप लगाते हुए कहते हैं कि उनकी पार्टी में कुछ ऐसे वरिष्ठ नेता है जो लंबे समय से अपने घर में लगे एयर कंडीशनर कमरे से बाहर तक तो निकलते नहीं है और गरीबों की हक की लड़ाई लड़ने का दम भरते हैं l
लेकिन नेताजी इस मामले में अपने आप को बताते हैं कि वह गरीबों के मसीहा हैं , गरीबों की लड़ाई लड़ते हैं और बस्ती में रहते हैं l लेकिन वास्तविकता इसके बिलकुल उलट है l क्योंकि ना तो नेताजी का घर बस्ती में आता है और ना ही उनके पहनावे में यह झलकता है l जबकि उनका घर शहर के सबसे पोर्श इलाके में आता है और उनका पहनावा भी अमीर घराने की तरह है l
इस सब के पीछे नेताजी की सिडकुल क्षेत्र में चल रही ठेकेदारी के कार्य में से एक माना जाता है उनका नाम जिले में सिडकुल के “रसूखदार ठेकेदारों” की सूची में भी शामिल हैं। इसका गुमान नेताजी को ही नहीं बल्कि इससे ज्यादा तो उनके परिजनों में है जो कभी किसी दर्जी की सिलाई पसंद नहीं आने पर सरे आम उसकी पिटाई कर देते हैं I
लेकिन वक्त का पहिया भी बड़ा बलवान है …..कहते हैं ना …. दुखिया को ना सताए …. दुखिया देगा रोए …. जब दुखिया का मुखिया सुने तो तेरा क्या हुए …. यही कहावत बीते माह नेताजी पर बिल्कुल सटीक बैठती हुई नजर आई थी, जोकि शहर ही नहीं पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय लंबे समय तक बनी रही थी।
लेकिन बावजूद इसके नेताजी विपक्ष की राजनीति को भी इस तरीके से करते हैं कि मानो वह सत्ता पक्ष के ही हो l सूत्रों की माने तो नेताजी कंपनी प्रबंधकों के सामने वह अपने आप को विपक्ष का नेता कम सत्ता पक्ष के नेताओं से अपनी मजबूत पकड़ बताकर ठेके लेने की कला में माहिर है। कई प्रबंधक उनके आत्मविश्वास से इतने भयभीत हो जाते कि ठेका उनकी जेब में पहुंच जाता।
वहीं अगर नेताजी का कोई श्रमिकों से जुड़ा मामले का विवाद अगर गलती से विभाग में आता है तो वह भी अपनी नेतागिरी की पूरी हनक दिखाते हुए अपने विरुद्ध किसी भी प्रकार की कार्रवाई से बचने के लिए पहले ही फाइलें ठंडे बस्ते में डलवा देते हैं। अब ऐसे में नेताजी अपनी आमदनी रात दुगनी चौगुनी करने में लगे हैं और फिर एक तरफ गरीबों का मसीहा बताकर जनता को ही गुमराह कर रहे हैं।।

