युवा कल्याण अधिकारी ड्राईवर पर मेहरबान तैनाती के नियम ताक पर, आठ साल से एक जगह पर तैनात ड्राईवर राम प्रकाश कर रहा मनमानी
सौरभ गंगवार/टुडे हिंदुस्तान
युवा कल्याण अधिकारी ड्राईवर पर मेहरबान
तैनाती के नियम ताक पर, आठ साल से एक जगह पर तैनात ड्राईवर राम प्रकाश कर रहा मनमानी
रूद्रपुर। युवा कल्याण विभाग में तैनाती के नियमों की खुलेआम अनदेखी और प्रशासनिक दबाव की कहानी जिले में तेजी से चर्चा का विषय बनी हुई है। युवा कल्याण अधिकारी भूपेन्द्र सिंह रावत की नाक के नीचे पीआरडी (प्रांतीय रक्षक दल) के कुछ जवान नियमों और अनुशासन को ताक पर रख रहे हैं, और उनकी शह में यह मनमानी लगातार चल रही है।
दरअसल प्रांतीय रक्षक दल के जवानों की तैनाती के लिए शासन ने स्पष्ट नियमावली बनाई है। नियमों के अनुसार, प्रशिक्षित स्वयंसेवकों को एक स्थान पर अधिकतम छह माह के लिए ही तैनाती दी जा सकती है। यह इसलिए सुनिश्चित किया गया है ताकि सभी जवानों को यथासंभव ड्यूटी मिले और कोई भी स्वयंसेवक लंबे समय तक एक स्थान पर रहकर विभागीय काम में हस्तक्षेप या भ्रष्टाचार में लिप्त न हो सके।
जिले में इन जवानों की तैनाती की जिम्मेदारी जिला युवा कल्याण अधिकारी के अधीन होती है। शासन द्वारा तय नियमावली के तहत हर स्वयंसेवक को रोटेशन के हिसाब से स्थानांतरित किया जाना अनिवार्य है। लेकिन रूद्रपुर में स्थिति उलट है। विभागीय सूत्रों के अनुसार, युवा कल्याण अधिकारी भूपेन्द्र सिंह रावत के वाहन के चालक और पीआरडी जवान रामप्रकाश को पिछले आठ वर्षों से एक ही स्थान पर तैनात रखा गया है, जबकि नियम स्पष्ट रूप से केवल छह माह की अधिकतम तैनाती का प्रावधान करता है।
लोगों का आरोप है कि रामप्रकाश इस संरक्षण का फायदा उठाकर न सिर्फ मनमानी करता है बल्कि विभागीय कार्यों में भी खुलकर दखलअंदाजी करता है। इसकी वजह से अन्य जवानों और कर्मचारियों में असंतोष बढ़ा है, और नियमों के उल्लंघन को लेकर विभागीय अनुशासन का मामला गंभीर हो गया है।
इस मामले में सवाल यह उठता है कि क्या जिले में नियमों का पालन करना केवल कागजों तक ही सीमित है, या फिर जिम्मेदार अधिकारी अपनी सहमति और संरक्षण के बल पर नियमों की अनदेखी कर रहे हैं। आठ सालों तक एक ही स्थान पर तैनाती न केवल नियमों का उल्लंघन है, बल्कि यह अनुशासनहीनता और विभागीय भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा देती है। सूत्रों के अनुसार, कई बार अन्य जवानों ने शिकायत की और नियमों के अनुसार कार्रवाई की मांग भी की, लेकिन युवा कल्याण अधिकारी की शह और संरक्षण के कारण कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया इससे विभाग के भीतर अनुशासनहीनता और पारदर्शिता के मुद्दे और गंभीर हो गए हैं।
जानकारों का कहना है कि यह मामला केवल एक ड्राईवर की मनमानी तक सीमित नहीं है। यह पूरे युवा कल्याण विभाग में नियमों के पालन और प्रशासनिक जवाबदेही पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। अगर समय रहते इस पर कड़ी कार्रवाई नहीं की गई, तो यह अन्य कर्मचारियों और जवानों में भी नियमों की अवहेलना की प्रवृत्ति को बढ़ावा देगा यह मामला न केवल नियमों की अनदेखी है, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही, अनुशासन और विभागीय पारदर्शिता की परीक्षा भी बन गया है।।