फर्जी हैसियत प्रमाण पत्रों के सहारे फल-फूल रही ठेकेदारी बाहर के ठेकेदार भी हड़प रहे उत्तराखंडवासियों का हक
सौरभ गंगवार/टुडे हिंदुस्तान
फर्जी हैसियत प्रमाण पत्रों के सहारे फल-फूल रही ठेकेदारी
बाहर के ठेकेदार भी हड़प रहे उत्तराखंडवासियों का हक
रूद्रपुर। उत्तराखंड का औद्योगिक और कारोबारी दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण माने जाने वाला उधम सिंह नगर जिले में ठेकेदारी का खेल फर्जी हैसियत प्रमाण पत्रों के सहारे बड़े पैमाने पर फल-फूल रहा है। स्थिति यह है कि जिन नजूल की जमीनों पर रह रहे लोगों के लिए कानूनी रूप से हैसियत प्रमाण पत्र बन ही नहीं सकता वहीं से बड़ी संख्या में ठेकेदार ठेकेदारी का लाइसेंस हासिल कर चुके हैं। नगर पालिका,नगर निगम,नगर पंचायत,जिला पंचायत,लोक निर्माण विभाग, पेयजल विभाग,जल निगम,जल संस्थान,ग्रामीण निर्माण विभाग और मंडी समिति जैसे अनेकों सरकारी संस्थानों में ऐसे ठेकेदार काम कर रहे हैं, जिनके दस्तावेजों की वैधता ही संदिग्ध है।
जानकारों का कहना है कि यदि प्रशासनिक स्तर पर इन ठेकेदारों के हैसियत प्रमाण पत्रों की गहन जांच कर ली जाए तो आधे से अधिक ठेकेदारों के पंजीकरण तुरंत रद्द हो जाएंगे दरअसल,नियम साफ तौर पर यह कहते हैं कि नजूल की भूमि पर बसे व्यक्तियों के लिए हैसियत प्रमाण पत्र जारी नहीं हो सकता इसके बावजूद यहां वर्षों से ऐसे ठेकेदार सक्रिय हैं, जो न केवल फर्जी प्रमाण पत्रों के सहारे ठेकेदारी कर रहे हैं बल्कि विभागों से करोड़ों रुपये के ठेके उठाकर मालामाल भी हो रहे हैं।
स्थिति की गंभीरता सिर्फ इतनी ही नहीं है। उत्तराखंड के बाहर से आए ठेकेदार भी बड़े आराम से यहां काम कर रहे हैं। स्थानीय लोगों का आरोप है कि इससे उत्तराखंडवासियों का हक मारा जा रहा है। भूतपूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी ने सिडकुल की स्थापना के समय यह सुनिश्चित करने के लिए एक शासनादेश जारी किया था कि सबसे पहले रोजगार और भागीदारी का अवसर उत्तराखंड के लोगों को दिया जाएगा उसके बाद ही बाहर के लोगों को मौका मिलेगा लेकिन आज की हकीकत यह है कि उस नियम को तिजोरी में बंद कर भुला दिया गया है।
जानकारों का कहना है कि न केवल बाहर के ठेकेदारों को अनुचित लाभ दिया जा रहा है, बल्कि इनमें से कई ने फर्जी हैसियत प्रमाण पत्र बनाकर सरकारी विभागों से ठेके भी हासिल किए हुए हैं। यह पूरी प्रक्रिया स्थानीय युवाओं और ठेकेदारों के भविष्य पर कुठाराघात है। एक कहावत यहां अक्सर सुनाई देती है “बाहर का ठेकेदार खाए च्यवनप्राश और उत्तराखंड का ठेकेदार खाए घास” यह कहावत अब हकीकत बन चुकी है।
प्रशासन की अनदेखी और मिलीभगत ने फर्जीवाड़े को इस कदर बढ़ावा दे दिया है कि सच्चे और पात्र ठेकेदार हाशिए पर धकेल दिए गए हैं। सवाल उठना लाजमी है कि आखिर कब प्रशासन जागेगा और कब इन फर्जी हैसियत प्रमाण पत्रों के सहारे चल रहे ठेकेदारी माफिया पर नकेल कसेगा।।