फर्जी अस्पतालों की भरमार, मरीजों के जीवन से खिलवाड़ जिले में निजी अस्पताल जमकर उड़ा रहे नियमों की धज्जियां बिना पंजीकरण चल रहे अस्पतालों पर स्वास्थ्य विभाग मेहरबान
सौरभ गंगवार/टुडे हिंदुस्तान
रूद्रपुर। स्वास्थ्य विभाग की नाक के नीचे जिले में अपंजीकृत निजी अस्पतालों, क्लीनिक, पैथोलॉजी लैब सेंटरों की दुकानें चल रही है। जहां मरीजों का दोहन स्वास्थ्य विभाग की मिलीभगत से हो रहा है। आलम यह है कि फर्जी तरीके से चल रहे निजी अस्पतालों और क्लीनिकों में नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ा रही हैं और स्वास्थ्य विभाग आंखें मूदकर बैठा है।
बता दें नर्सिंग होम, पैथोलॉजी, अल्ट्रासाउंड सेंटर और प्राइवेट प्रैक्टिस करने के लिए मुख्य चिकित्सा अधिकारी के कार्यालय में पंजीकरण करवाना होता है। जहां प्रक्रियाएं पूरी करने के बाद ही कोई अस्पताल आदि का संचालन कर सकता है। संस्थान का प्रतिवर्ष रिन्यूअल भी करवाना होता है। नियमानुसार प्राइवेट क्लिनिक, अस्पतालों, डायग्नोस्टिक सेंटरों को रजिस्ट्रेशन कराने के साथ साथ अस्पताल में पूछताछ केंद्र के पास डाक्टर का नाम, उनकी योग्यता, मेडिकल काउंसिल रजिस्ट्रेशन नंबर, दी जा रही सुविधाओं और उसके लिए तय राशि का विवरण हिन्दी और अंग्रेज़ी में डिस्प्ले करना आवश्यक होता है। लेकिन अधिकांश अस्पताल नियमों को ताक पर रखकर संचालन कर रहे हैं।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय की मिलीभगत से जिले में बड़ी संख्या में निजी अस्पताल फर्जी तरीके से अपनी दुकानें चला रहे हैं। कई अस्पतालों में अनट्रेंड स्टाफ मरीजों का ईलाज करके उनकी जान जोखिम में डाल रहा है। इन अस्पतालों और चिकित्सकों को स्वास्थ्य विभाग का कोई भय नहीं है। इसके पीछे बड़ी वजह यह मानी जा रही है कि सीएमओ ऑफिस के साथ इनका गठजोड़ है। सैटिंग गैटिंग के चलते इन अस्पतालों पर कार्रवाई करने की हिम्मत स्वास्थ्य विभाग नहीं जुटा पा रहा है।
बताया जाता है कि जिले में ऐसे निजी अस्पतालों की भरमार हो गई है, जो बिना पंजीकरण के संचालित हो रहे हैं। आये दिन चिकित्सकीय लापरवाही से जच्चा या बच्चा अथवा दोनों की मौत होने पर परिजन हंगामा करते हैं। पुलिस और स्वास्थ्य विभाग के अफसर पहुंचते हैं। थोड़ी छानबीन होती है और फिर मामला ठंडा हो जाता है। जिले में हाल के दिनों में कई ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जिसमें लापरवाही से मरीजों की मौत हो चुकी है। घटना के बाद परिजन हो-हल्ला करते हैं तो मामला सामने आता है अन्यथा दबकर रह जाता है। ऐसे मामलों में आज तक स्वास्थ्य विभाग की ओर से बड़ी कार्रवाई नहीं की गयी मामला कुछ दिन में ही रफा दफा कर दिया जाता है।